Shraddha Murder case

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    अब माहौल खौफनाक है, अब प्यार के लिए जान दी नहीं जाती, बल्कि ले ली जाती है। श्रद्धा और आफताब, जिसमें एक इंसान मोहब्बत बुनता रहा और दूसरा उस मोहब्बत के 35 टुकड़े कर गया। जो बात 12 वर्ष की आयु में बतानी चाहिए, वह बात यदि आप 25 की आयु में बताएंगे तो अपने शरीर के 35 टुकड़े करवाने के लिए हर गली में खुद एक श्रद्धा तैयार करते चले जाएंगे। समाज सेवक अतुल मलिकराम के अनुसार, यहां श्रद्धा की यही गलती थी कि उसने आफताब पर आंख मूंदकर भरोसा किया। कई संकेत मिलने के बाद भी वह खुद को उससे अलग नहीं कर सकी। जरा सोचिए, यदि परिवार उसे अकेला होने ही नहीं देता, तो क्या खतरा भांप लेने के बावजूद वह खुद को मौत के मुंह में जान-बूझकर झोंकती?

    गुड टच – बैड टच की सीख

    यदि समय रहते बढ़ती उम्र में अपने और पराए, सही और गलत के बीज बच्चे के मन-मस्तिष्क में बो दिए जाएं तो शायद वह इंसान की परख करना सीख सके। लेकिन हम यहां एक बहुत बड़ी गलती करते हैं, परिपक्व हो जाने के बाद बच्चों को सही और गलत के मायने पढ़ाना शुरू करते हैं, तब बातों के कोई मायने नहीं रहते। छोटी उम्र में बच्चों को स्कूल में गुड टच और बैड टच की सीख दी जाती है, जिसे अब गंभीरता से लेने की जरूरत है। पैरेंट्स भी बच्चों को गुड पर्सन और बैड पर्सन के बारे में बताएं। उन्हें इस काबिल बनाएं कि वे आपसे अच्छी-बुरी हर बात शेयर करें, इसके लिए आपको उनके पैरेंट्स से पहले अच्छे दोस्त बनकर रहना होगा। उन पर बंदिशें न लगाएं, ताकि वे आपसे कोई बात न छिपाएं। उनके बैग्स, कॉपीज और मोबाइल चेक करते रहें। आपत्तिजनक वस्तु मिलने पर उन पर दबिश न करें, बल्कि उन्हें प्यार से समझाएं। उनके दोस्त किस तरह के हैं, संगत कैसी है, इस पर भी ध्यान दें और उनकी गतिविधियों पर नजर रखें, ताकि बात बढ़ने से पहले इसे संभाला जा सके।

    इल्जाम लगाना छोड़िए

    बच्चों पर इल्जाम लगाना छोड़िए, अपने गिरेबान में भी एक दफा झांकिए कि आप कहां कम पड़ रहे हैं। समय रहते बच्चों को खुद से दूर जाने से बचा लें, नहीं तो 35 टुकड़े होने के बाद सिर्फ टुकड़े ही ला सकोगे, बेटी वापस नहीं ला सकोगे। श्रद्धा सबक दे गई है उन तमाम पैरेंट्स को, जो गलत समय पर सही शिक्षा देने की भूल करते चले आ रहे हैं।