UP में अनेक चरणों में मतदान की योजना ताकि, BJP को पूरी ताकत लगाने का मौका मिले

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    चुनाव आयोग से सहज उम्मीद की जाती है कि वह स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से चुनाव कराएगा तथा सभी पार्टियों को चुनाव प्रचार का उपयुक्त अवसर प्रदान करेगा लेकिन क्या वास्तव में ऐसा हो पाता है? पहली बात तो यह कि सत्तारूढ़ दल के दबदबे का कुछ असर चुनाव आयोग पर भी पड़ता देखा गया है. आमतौर पर अनुभव यह रहा है कि चुनाव में सत्ताधारी दल को झुकता माप दिया जाता है और उसकी सहूलियतों को ध्यान में रखा जाता है. 

    देश के 5 राज्यों के चुनाव निकट हैं जिनमें से खासतौर पर यूपी के चुनाव पर सबकी निगाह रहेगी. यह अधिक आबादी का बड़ा प्रदेश होने की वजह से यहां कई चरणों में चुनाव कराया जाता है. इसके लिए कानून-व्यवस्था और संवेदनशील इलाके होने की दलील दी जाती है. पिछली बार भी उत्तरप्रदेश में 11 फरवरी 2017 से 8 मार्च 2017 के बीच 7 चरणों में विधानसभा चुनाव कराया गया था. इस बार भी लगभग उतने ही चरणों में चुनाव कराने की संभावना नजर आती हैं. बंगाल विधानसभा के चुनाव भी 8 चरणों में कराए गए थे.

    यदि चुनाव 7 या 8 चरण में करवाया जाए तो उसका उद्देश्य साफ दिखाई देता है कि बीजेपी को प्रचार के लिए पूरी ताकत लगाने का समय और मौका मिल जाता है. बंगाल में यही किया गया ताकि साधनसंपन्न पार्टी होने की वजह से बीजेपी बार-बार बड़ी-बड़ी रैलियां आयोजित कर सके और मोदी और शाह जैसे उसके बड़े नेता वहां संबोधित कर जनमानस को प्रभावित कर सकें. 

    अधिक चरणों में चुनाव प्रचार उन पार्टियों के लिए संभव नहीं हो पाता जिनके संसाधन सीमित हैं. शुरुआती कुछ चरणों के बाद उन दलों के प्रचार में जोश या चमकदमक की कमी होती जाती है. इस तरह अधिक चरणों में चुनाव कराना बीजेपी को अन्य पार्टियों की तुलना में अनुकूलता प्रदान करता है.

    ओमिक्रान की चुनौती

    ऐसे समय जब ओमिक्रान तेजी से फैल रहा है और कोरोना की तीसरी लहर की आशंका से जनमानस सहमा हुआ है तब चुनाव को अनेक चरणों में आयोजित कराना खतरे की घंटी साबित हो सकता है. ज्यादा चरणों की वजह से चुनाव लंबा चलेगा जो 3 सप्ताह से 1 माह तक चल सकता है. इस दौरान चुनावी जुलूस, रोड शो व रैलियां भी काफी होंगी. गरीब और मनरेगा में काम करनेवाले मजदूर तथा ग्रामीणों के बड़ी तादाद में चुनाव रैलियों में मैदान भरने के लिए बसों व ट्रकों से लाया जाएगा. 

    इस भीड़ से मास्क पहनने व कोरोना प्रोटोकाल के पालन की उम्मीद रखना व्यर्थ है. इससे संक्रमण खतरनाक तरीके से फैल सकता है. अपने चुनावी स्वार्थ के लिए नेता जनस्वास्थ्य की चिंता को ताक पर रख देते हैं. चुनाव कार्यक्रम घोषित करने के पूर्व चुनाव आयोग इस पहलू पर भी गंभीरता से ध्यान दे. क्या ओमिक्रान के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए अनेक चरणों में चुनाव कराना उचित रहेगा?