अयोध्या में जमीन की बंदरबांट, नेता-अफसर कोई मौका नहीं छोड़ते

    Loading

    नेता और अफसरों की गिद्ध दृष्टि लगी रहती है कि कैसे लोगों को ठग कर कीमती जमीन हथियाई जाए. वे बंदरबाट का कोई मौका नहीं छोड़ते. नवंबर 2019 में राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आते ही अवसरवादी नेताओं व अफसरों ने प्रस्तावित राम मंदिर के निकट की जमीनें औने-पौने दाम में खरीद लीं. जिनकी जमीन थी, उन्हें बहुत कम दाम दिए गए और उनकी अज्ञानता का पूरा लाभ उठाया गया. 15 अफसरों व विधायकों के रिश्तेदारों ने जमीन खरीदी.

    उन्हें पता था कि परिसर का विकास होने के लिहाज से यह जमीन बेहद कीमती होने वाली हैं, इसलिए मौका देखकर उसे हथिया लिया. राम मंदिर का रास्ता साफ होने पर सरकार ने जिन विकास योजनाओं का खाका खींचा, उसकी जानकारी इस अधिकारियों को थी. उन्होंने अपने रिश्तेदारों के नाम से जमीन खरीदी ताकि बाद में काफी ऊंचे दाम पर मंदिर निर्माण समिति के पदाधिकारियों को बेच सकें.

    तत्कालीन डीएम अनुज झा, अयोध्या के कमिश्नर एमपी अग्रवाल, पूर्व डीआईजी दीपक कुमार, अयोध्या के महापौर ऋषिकेश उपाध्याय, पूर्व मुख्य राजस्व अधिकारी पुरुषोत्तमदास गुप्ता, पूर्व एसडीएम आयुष चौधरी तथा रिटायर्ड आईएएस अधिकारी उमाधर द्विवेदी ने अपने रिश्तेदार के जरिए यह जमीन खरीदी.

    लेनदेन के इस घोटाले में महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट भी शामिल है जिसने राम मंदिर आंदोलन गरमाते हुए देखकर 1990 के दशक की शुरुआत में राम मंदिर स्थल से 5 किलोमीटर से भी कम दूरी पर जमीन के बड़े हिस्से का अधिग्रहण कर लिया था. अयोध्या के आसपास के गांव में इस भूमि में से 21 बीघा जमीन दलितों से केवल 6.38 लाख रुपए में मानदंडों का उल्लंघन करते हुए खरीदी गई थी. इस जमीन का वर्तमान रेट 4.25 करोड़ रुपए से लेकर 9.85 करोड़ रुपए के बीच है.

    सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग

    यह मामला उजागर होने पर बसपा अध्यक्ष मायावती ने नेताओं और अफसरों द्वारा मिट्टी मोल दामों पर जमीन खरीदे जाने के आरोपों की उच्चस्तरीय जांच कराने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप का आग्रह किया है. उन्होंने खरीद-फरोख्त रद्द करने की मांग की है. यह रिपोर्ट सामने आने पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या भूमि घोटाले की जांच का आदेश दे दिया है और 7 दिनों के भीतर दस्तावेजों के साथ रिपोर्ट मांगी है.

    नौकरशाहों का भ्रष्ट आचरण

    यह सीधा-सीधा नौकरशाहों और विधायकों के भ्रष्ट आचरण का मामला है जो जानते थे कि सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट से अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनने का रास्ता साफ हो गया है. इसके मास्टर प्लान के तहत बड़ा भूखंड लगेगा और राम जन्मभूमि परिसर के इर्द-गिर्द जमीनें खरीदी जाएंगी. इसे ध्यान में रखते हुए दलितों व कम पढ़ेलिखे लोगों पर दबाव डालकर और बेहद मामूली रकम देकर उनकी जमीन खरीद ली गई.

    चूंकि सरकारी अफसर खुद जमीन का सौदा नहीं कर सकता इसलिए उन्होंने अपने निकट रिश्तेदारों जैसे कि पिता, ससुर, चचेरी बहन या साली के नाम पर बेनामी खरीदी की. बाद में रामजन्म भूमि ट्रस्ट को यही जमीनें ऊंचे दाम पर दी गईं. इस संदर्भ में विहिप नेता चंपत राय का नाम भी सामने आया था. जिन उच्च अधिकारियों की कर्तव्यनिष्ठा व ईमानदारी पर सरकार विश्वास रखती है, उन्होंने ही लैंड डील में मोटी कमाई कर ली. देखना है कि जब ऐसी खरीद-फरोख्त उजागर हो गई तो सरकार क्या कार्रवाई करती है?