निर्मला सीतारमण की फिसली जुबान शब्दों के हेरफेर से सांसद हैरान

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, जुबान का फिसलना या स्लिप आफ टंग अर्थ का अनर्थ कर देता है. इसलिए संबोधन में नियंत्रण रखते हुए जमी हुई बात करनी चाहिए.’’

    हमने कहा, ‘‘मटके में कुल्फी जमती है, फ्रीजर में आइस्क्रीम जमता है लेकिन बात कैसे जमेगी! अधिकांश नेता अपने भाषणों में जमने वाली नहीं, बल्कि उखड़ने वाली बात कह जाते हैं. जहां तक फिसलने का सवाल है, कभी-कभी जानबूझकर फिसला जाता है. आप अमिताभ बच्चन और स्मिता पाटिल पर फिल्माया गया गीत याद कीजिए- आज रपट जाएं तो हमें न उठइयो, हमें जो उठइयो तो खुद ही फिसल जइयो! बच्चे पार्क की स्लाइड या घसरनपट्टी पर बार-बार मजे से फिसलते हैं. पर्यटक स्विटजरलैंड या गुलमर्ग जाकर बर्फ पर फिसलने का आनंद लेते हैं. स्कीइंग जैसा रोमांचक विंटर स्पोर्ट आपने फिल्मों में देखा होगा.’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, फिल्मों की रील लाइफ से बाहर निकलकर रीयल लाइफ में आइए और वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के बजट भाषण पर गौर फरमाइए. इस उम्र में वो तो नहीं फिसलीं लेकिन उनकी जुबान फिसल गई. माहौल ही कुछ ऐसा था. जब राहुल गांधी ने लोकसभा में प्रवेश किया तो कांग्रेस सांसद ‘जोड़ो-जोड़ो-भारत जोड़ो’ के नारे लगाने लगे. जवाब में बीजेपी सांसद भी मोदी-मोदी की नारेबाजी करने लगे. एयरपोर्ट डेवलप करने का उल्लेख होने पर कांग्रेसी सदस्य अडानी-अडानी चिल्लाने लगे.

    ऐसे में बजट भाषण दे रही निर्मला का ध्यान उचट गया. उन्हें कहना था कि सरकार पुरानी पॉल्यूटेड व्हीकल को रिप्लेस करने का इरादा रखती है. उनके मुंह से ओल्ड पॉल्यूटेड की बजाय ओल्ड पोलिटिकल व्हीकल निकल गया. आप समझ ही गए होंगे कि इसका मतलब पुरानी राजनीतिक पार्टी यानी कांग्रेस होता है. निर्मला की जुबान फिसल जाने से सदन का मूड हल्का हो गया.’’

    हमने कहा, ‘‘शब्दों की जगलरी करने वाले कभी-कभी जानबूझकर बुद्धिचातुर्य दिखाते हुए जुबान को फिसला देते हैं. शब्दों के मामूली हेरफेर से मजा आ जाता है.’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, कभी बोलने के टोन से अर्थ भी बदल जाता है. एक कामा इधर से उधर लग जाए तो मीनिंग चेंज हो जाती है. रोको, मत जाने दो. और रोको मत, जाने दो, इसकी मिसाल है. वैसे अमृत काल में निर्मला के निर्मल वचनों का अपना महत्व है.’’