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    मुंबई: महाराष्ट्र सरकार द्वारा पूर्व माओवादी विचारक कोबाड गांधी के संस्मरण के मराठी अनुवाद को दिया गया पुरस्कार वापस लेने के फैसले को लेकर विवाद के बीच विपक्ष के नेता अजित पवार ने बुधवार को कहा कि सत्तारूढ़ सरकार साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है।

    पवार ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार संस्मरण के अनुवाद के लिए एक चयन समिति द्वारा तय किए गए साहित्यिक पुरस्कार को रद्द करके “अघोषित आपातकाल” लगाने की कोशिश कर रही है। विधानसभा में विपक्ष के नेता पवार ने विवाद की पृष्ठभूमि में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार साहित्यिक पुरस्कारों के चयन में हस्तक्षेप कर रही है।

    उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों को इन मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। विवाद उस समय उत्पन्न हुआ जब सरकार ने कोबाड गांधी की “फ्रैक्चर्ड फ्रीडम: ए प्रीजन मेमॉयर” के अनुवाद के लिए अनघा लेले को यशवंतराव चव्हाण साहित्य पुरस्कार 2021 देने के निर्णय को पलट दिया। गांधी के कथित माओवादी संबंधों के कारण सोशल मीडिया पर इस फैसले की आलोचना हुई।

    सरकार द्वारा सोमवार को जारी एक बयान के अनुसार, चयन समिति के निर्णय को “प्रशासनिक कारणों” से उलट दिया गया, और पुरस्कार (जिसमें एक लाख रुपये की नकद राशि शामिल थी) को वापस ले लिया गया है। पवार ने कहा, ‘‘एकनाथ शिंदे सरकार साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है।” इस बीच, पुरस्कार चयन समिति के तीन सदस्यों ने “लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के अपमान” का हवाला देते हुए राज्य के साहित्य और संस्कृति बोर्ड से इस्तीफा दे दिया है।

    तीन लेखकों – डॉ प्रज्ञा दया पवार, नीरजा और हेरंब कुलकर्णी – उस समिति के सदस्य भी थे जिसने गांधी के संस्मरण के मराठी अनुवाद को पुरस्कार के लिए चुना था, जिसे सरकार ने वापस ले लिया था। पवार ने सवाल किया कि क्या चयन समिति के सदस्यों का इस्तीफा सरकार के लिए ‘शर्मनाक’ नहीं है। पूर्व उपमुख्यमंत्री पवार ने कहा, ‘‘इस महीने की शुरुआत में, (गांधी द्वारा लिखित) पुस्तक के अनघा लेले द्वारा किये गए अनुवाद के लिए एक पुरस्कार की घोषणा की गई थी। लेकिन अचानक पुरस्कार वापस ले लिया गया और चयन समिति को भंग कर दिया गया।”

    उन्होंने कहा, ‘‘राज्य साहित्य और संस्कृति बोर्ड के अध्यक्ष द्वारा गठित समिति के काम में यह हस्तक्षेप गलत और निंदनीय है। राजनीतिक दलों को इन मामलों में हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं है।” उन्होंने कहा कि लेले की तरह विभिन्न श्रेणियों में स्वर्गीय यशवंतराव चव्हाण साहित्य पुरस्कार 2021 के लिए चुने गए लेखक शरद बाविस्कर और आनंद करंदीकर ने विरोध स्वरूप अपने पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया है।

    करंदीकर ने मंगलवार को पीटीआई-भाषा से कहा कि महाराष्ट्र सरकार द्वारा लेले के मराठी अनुवाद के लिए दिए गए पुरस्कार को वापस लेने के विरोध में वह अपना पुरस्कार लौटा देंगे। उन्होंने कहा था कि पुरस्कार वापस लेने का सरकार का कदम “विचारों की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पूर्ण पाबंदी” है।(एजेंसी)