शिवाजी विश्वविद्यालय को 5 करोड़ की निधि

  • केंद्रीय जैव तकनीक मंत्रालय ने किया मंजूर

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कोल्हापुर. केंद्र सरकार के जैव तकनीक विभाग के ‘बिल्डर’ (बूस्ट टू यूनिवर्सिटी इंटरडिसिप्लिनरी लाइफ साइन्स डिपार्टमेंट्स फॉर एजुकेशन एंड रिसर्च प्रोग्राम) योजना के तहत कोल्हापुर (Kolhapur) के शिवाजी विश्वविद्यालय (Shivaji University) को अनुसंधान (research) के लिए 5 करोड़ रुपयों (5 crore rupees) की निधि (Fund) मंजूर की गई है. 

इस योजना के तहत निधि प्राप्त करने वाला शिवाजी विश्वविद्यालय देश का एक मात्र विश्वविद्यालय बन गया है.

जैव तकनीक विज्ञान शाखा में होगा अनुसंधान

विश्वविद्याल के प्र -कुलगुरू और प्रकल्प के समन्वयक डॉ. पी. एस. पाटिल (Dr. P.S. Patil) ने बताया कि केंद्रीय जैव तकनीक विभाग ने अंतरविद्याशाखा के संयुक्त अनुसंधान प्रकल्पों को गति दिलाने के उद्देश्य से डीबीटी-बिल्डर योजना घोषित की हुई है. इसके पीछे जैव तकनीक विज्ञान की विभिन्न शाखाओं को एकत्र कर संयुक्त प्रकल्पों का आयोजन करने का मुख्य इद्देश्य है. इस विश्वविद्यालय के वनस्पति शास्त्र (Botany), नैनो साइन्स (Nano science) और तकनीक (Technique) और बायो इन्फॉर्मेटिक्स (Bio Informatics) इन तीनों विद्याशाखाओं की ओर से सूक्ष्म जीवों से उत्पन्न होने वाले उपयोगी नैनो कणों के निर्माण का प्रकल्प पेश किया था. यह पंचवार्षिक प्रकल्प मंजूर हुआ है और इसके लिए 5 करोड़ रुपयों की निधि प्राप्त होगी.

ऐसा होगा अनुसंधान प्रकल्प?

इस प्रकल्प पर नैनो साइन्स तथा तकनीक विभाग के डॉ. किरण पवार, सूक्ष्मजीव शास्त्र विभाग के डॉ. के.डी. सोनवणे और वनस्पति शास्त्र विभाग के डॉ. एम. एस. निंबालकर ये 3 अनुसंधानकर्ता काम करेंगे. डॉ. पवार विभिन्न धातुओं के अलग-अलग आकार के नैनो पार्टिकल्स तैयार करना और उनके भौतिक गुणधर्मों को जांचना इस पर अनुसंधान करेंगे. जबकि डॉ. निंबालकर अनुसंधान और विकास की जिम्मेदारी के साथ-साथ विभिन्न जिवाणु, विषाणु, वनस्पतियों के नैनो तकनीक की उपयोगीता पर अनुसंधान करेंगे. डॉ. सोनवणे पश्चिमी घाटी में स्थित विभिन्न वनस्पतियों के नैनो पार्टिकल तैयार करने तथा उनके औषधि और खेती पूरक इस्तेमाल पर अनुसंधान करेंगे.

डीबीटी-बिल्डर प्रकल्प शिवाजी विश्वविद्यालय को मंजूर होने से यहां के जैव तकनीकी आंतरविद्याशाखा के अनुसंधान को बल मिलेगा. इस अनुसंधान से जैविक नैनो कण और नैनो मटेरियल का नया रूप सामने आएगा. इसका इस क्षेत्र के अनुसंधान पर दूरगामी असर दिखाई देगा.

-डॉ. डी. टी. डॉ. शिर्के, कुलगुरू, शिवाजी विश्वविद्यालय