पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, हमें चिंता है कि ट्विटर और फेसबुक से छंटनी किए गए कर्मचारी क्या करेंगे. ऐसे ही नेटफ्लिक्स व माइक्रोसाफ्ट भी अपने कर्मियों को नौकरी से हटा रहे हैं? ये लोग कहां जाएंगे और क्या करेंगे? ऐसी कनफ्यूजन की स्थिति को लेकर देवआनंद और कल्पना कार्तिक की पुरानी फिल्म ‘टैक्सी ड्राइवर’ का गाना था- जाएं तो जाएं कहां, समझेगा कौन यहां दर्द भरे दिल की जुबां.’’
हमने कहा, ‘‘किसी दूसरे की बेरोजगारी से आपको क्या लेना-देना! यदि व्यक्ति काबिल है तो कोई दूसरी नौकरी ढूंढ लेगा या खुद का रोजगार शुरू कर सेल्फ एप्लॉयड बन जाएगा. कुछ लोग जिंदगी भर नौकरी या उद्योग-धंधा नहीं करते और आराम से बैठे-बैठे मुफ्त की रोटियां तोड़ते हैं. ऐसे लोगों के बारे में कहा गया है- अजगर करे ना चाकरी, पंछी करे ना काम, दास मलूका कह गए सबके दाता राम! दुनिया में आलसी और मुफ्तखोरों की कमी नहीं है.’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज कर्मठ व्यक्ति काम किए बगैर नहीं रह सकता. उसे निठल्ला रहना बर्दाश्त नहीं होता. उसके लिए कोई उपाय बताइए कि वह अपने को व्यस्त कैसे रखे?’’
हमने कहा, ‘‘वह चाहे तो तीर्थयात्रा, पदयात्रा या भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हो जाए. पहले उत्तर-दक्षिण और फिर पूर्व-पश्चिम घूम ले. वह हर प्रांत की अलग-अलग भाषा और संस्कृति को सीखे-समझे! जिसे चलने-फिरने का शौक नहीं है वह मित्रों के साथ समय बिताए. कुछ पुस्तकालयों की मेंबरशिप ले ले और अपनी पसंद के विषयों की किताबें लाकर पढ़ा करे. कहा गया है- बुक्स आर दि बेस्ट फ्रेंड आफ ए मैन! यदि पढ़ने की इच्छा नहीं है तो मोबाइल लेकर टाइमपास करे या टीवी देखे. तुकबंदी की पगडंडी पर कल्पना के घोडे दौड़ाकर कविता लिखे.’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘आप नौकरी से निकाले गए व्यक्ति की दुख भरी मनस्थिति को समझिए. उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा जाता है. उसे समझ में नहीं आता कि जिएं तो जिएं कैसे! कल तक मस्त था, आज पस्त हो गया.’’ हमने कहा, ‘‘व्यक्ति का व्यस्त रहना जरूरी है. जब तक सांस है तब तक आस रखनी चाहिए. उसके पास थोड़ी जमीन है तो किचन गार्डन लगाए या फूल-पौधे उगाए. एक किलो मेथी की भाजी ले आए और एक-एक पत्ती तोड़े. समय बीत जाएगा. यदि कुछ नहीं सूझता तो हमारी सलाह है कि खाली मत बैठा कर, पायजामा उधेड़ सिया कर.’’