vasundhara raje and jyotiraditya scindia
वसुन्धरा राजे और ज्योतिरादित्य सिंधिया

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नवभारत डिजिटल डेस्क: मध्य प्रदेश और राजस्थान के विधानसभा चुनाव समाप्त हो चुके हैं। मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh Assembly Election) में जहां 17 नवंबर को वोट डाले गए, वहीं राजस्थान (Rajasthan Assembly Election) में 25 नवंबर को लोगों ने अपने मताधिकार का उपयोग किया। इसके बाद सभी तीन दिसंबर का इंतजार कर रहे हैं। दोनों राज्यों में हुए चुनाव में कई मुद्दे और नेता चर्चा का केंद्र रहे। लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा हुई बुआ और भतीजे की। यानी राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया (Vasundhara Raje Scindia) और ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) की। 

भारतीय राजनीति में सिंधिया परिवार

सिंधिया परिवार का भारतीय राजनीति में एक बड़ा स्थान रहा है। राजमाता विजया राजे सिंधिया से शुरू हुआ यह राजनितिक सफर ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ चल रहा है। सबसे महत्वपूर्ण यह पहला ऐसा राजनीतिक घराना रहा जिसने देश की दो सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस सहित पहले जनसंघ और अब भाजपा के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाई। राजमाता सिंधिया को पहले जनसंघ फिर भाजपा का संस्थापक सदस्य माना जाता है। राजमाता ही थी, जिसके कारण मध्य प्रदेश सहित हिंदी हार्टलैंड में भाजपा ने खुद को मजबूती से खड़ा किया। इसी के साथ यह पहला ऐसा परिवार है, जिसके आसपास देश के दो बड़े राज्यों की राजनीति घूमती दिखाई देती है। 

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राजनीति में सिंधिया परिवार

राजनीति में राजमाता के तीन बच्चे 

राजमाता सिंधिया को एक बेटा माधव राजे सिंधिया और चार बेटियां हुई। बेटियों में वसुंधरा, उषा, पद्मा और यशोधरा राजे सिंधिया है। हालांकि, राजनीति में राजमाता के तीन ही बच्चे आए, जिनमें वसुंधरा, यशोधरा और बेटा माधवराव सिंधिया हैं। वसुंधरा जहां भारतीय जनता पार्टी की वरिष्ठ नेता हैं, इसी के साथ वह राजस्थान की दो बार मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं। दूसरी बेटी यशोधरा मध्य प्रदेश सरकार की वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री रह चुकी है। वहीं बेटे माधव राव सिंधिया कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे। इसी के साथ उन्हें गांधी परिवार का बेहद करीबी माना जाता था। उनके निधन के बाद उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने पिता की राजनीति विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। बस फर्क इतना है कि, पिता ने माँ से विवाद होने पर कांग्रेस का हाथ पकड़ा था। वहीं बेटे ने कांग्रेस आलाकमान से हुए मतभेद के बाद हाथ छोड़कर भाजपा से शामिल होकर इसे बढ़ा रहे हैं। 

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वसुंधरा राजे, यशोधरा और माधवराव सिंधिया

बुआ-भतीजे की लगेगी लॉटरी

बुआ वसुंधरा और भतीजे ज्योतिरादित्य भले ही एक परिवार के हैं। लेकिन दोनों की राजनीति अलग-अलग राज्यों में चलती है। ज्योतिरादित्य जहां मध्य प्रदेश की राजनीति करते हैं, वहीं वसुंधरा राजस्थान की। दोनों नेता अपने-अपने राज्यों की कद्दावर नेता हैं। बीते चुनाव में दोनों राज्यों की राजनीति उनके आसपास घूमती थी, लेकिन इस बार मिजाज थोड़ा बदला हुआ दिखाई दे रहा है। दोनों नेताओं के सामने अपनी राजनीतिक हैसियत को बनाएं रखने की चुनौती है। हालांकि, परिस्थिति बदली तो दोनों नेताओं की लॉटरी लगने से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। 

vasundhara raje and jyotiraditya scindia in bjp
वसुंधरा राजे और ज्योतिरादित्य सिंधिया

वसुंधराराजे सिंधिया

राजमाता का परिवार जितना चर्चा में रहा है, उससे ज्यादा उनके बच्चों का राजनीति में आना भी रहा। वसुंधरा राजे सिंधिया की शादी धौलपुर के राजा हेमंत सिंह से हुई थी। हालांकि, उनकी शादी ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाई और एक साल में ही दोनों अलग हो गए। अलग होने के बाद वसुंधरा अपने मायके लौट गई। हालांकि, उस समय के भाजपा के प्रमुख नेता रहे भैरों सिंह शेखावत उन्हें वापस राजस्थान लेकर आएं और उनका राजनीतिक करियर शुरू कराया। वसुंधरा ने 1984 में आधिकारिक तौर पर राजनीति में प्रवेश किया। नवनिर्मित भाजपा का उनके केंद्रीय समिति का सदस्य बनाया गया। वहीं इसी साल उन्हें विधानसभा का टिकट मिला और वह चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंची।  

अपने 39 साल के राजनीतिक करियर में वसुंधरा पांच पर लोकसभा और पांच बार विधानसभा की सदस्य रही। जिसमें 2003 से 2008 और 2013 से 2018 तक वह राजस्थान की मुख्यमंत्री भी रहीं। वसुंधरा की राजस्थान की राजनीति और भाजपा में क्या अहमियत है इसी से जाना जा सकता है कि, पिछले कई सालों से राजस्थान भाजपा की राजनीति उनके आजु-बाजू ही घूमती रहती है। या तो वसुंधरा होगी या नहीं होंगी। 

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वसुंधरा राजे सिंधिया

2003, 2008, 2013 और 2018 राजस्थान विधानसभा चुनाव का चुनाव वसुंधरा के नेतृत्व में ही लड़ा गया था। जिसमें 2003 और 2013 में उन्हें जीत मिली थी। इसके बाद उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री भी बनाया गया। हालांकि, इस बार का चुनाव वसुंधरा के लिए अनिश्चितताओं से भरा रहा है। पहले तो यह चर्चा शुरू हुई कि, क्या भाजपा वसुंधरा को विधानसभा का टिकट देगी या नहीं। अगर चुनाव में उतरा तो उन्हें मुख्यमंत्री बनेगी की नहीं। वहीं वसुंधरा के विरोधियों ने भी उनके खिलाफ लामबंद हो गए। बीते पांच साल में वह लगातर पार्टी की बैठकों और कार्यक्रमों से दूर रही। वहीं यह चर्चा भी रही कि, यह भाजपा शीर्ष नेतृत्व के साथ उनका सब सही नहीं चल रहा है। हालांकि, चुनाव के दौरान उन्हें सबसे ज्यादा सक्रिय देखा जारहा है। 

राजस्थान भाजपा की वह एक मात्रा नेता है, जो अपने सीट के अलावा अन्य सीटों पर भी जाकर प्रचार कर रही है। चुनाव के पहले जो वसुंधरा बैकफुट पर थी, वह अब चुनावी मैदान में खुलकर लड़ाई लड़ रही है। राजस्थान में वसुंधरा की क्या ऐहमियत है इसी से समझा जा सकता है कि , टिकट बटवारे में न चाहते हुए भी भाजपा ने उनके समर्थको को टिकट दिया। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी सभा के दौरान उन्होंने कई बार सिंधिया और उनके कामों की तरफ भी की है। इसके बाद यह चर्चा शुरू हो गई कि, क्या भाजपा वापसी करती है तो वसुंधरा को तीसरी बार मुख्यमंत्री बनाएगी। 

ज्योतिरादित्य सिंधिया 

अपनी बुआ की तरह भतीजे ज्योतिरादित्य सिंधिया का राजनीति में प्रवेश केवल एक हादसे के वजह से हुआ। सितंबर 2001 एक में एक विमान दुर्घटना में माधवराव सिंधिया की मौत हो गई। थी। जिस समय यह हादसा हुआ था उस समय ज्योतिरादित्य  स्टैनफोर्ड ग्रेजुएट स्कूल ऑफ बिजनेस में एमबीए की पढाई कर रहे थे। पिता की मौत के बाद वह वापस लौटे और उसी साल दिसंबर में कांग्रेस में शामिल हो गए। इसी के साथ कांग्रेस ने उन्हें गुना से टिकट दिया, जहां साढ़े चार लाख वोटों से जीतकर वह लोकसभा पहुंचे। 

इसके बाद सिंधिया ने वापस लौटकर नहीं देखा। 2004, 2009 और 2014 में लगातार चौथी बार वह लोकसभा के लिए चुने गए। 2004 में जब यूपीए की सरकार आई तो उन्हें केंद्रीय राज्यमंत्री बनाया गया। वहीं 2009 में उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया। हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पडा। वहीं कांग्रेस के साथ हुए मतभेद के बाद 2020 में वह भाजपा में शामिल हो गए। जहां पार्टी ने पहले उन्हें राज्यसभा भेजा फिर उन्हें मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री बनाया गया। 

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ज्योतिरादित्य सिंधिया

2023 के विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा चर्चा जीस नाम की हुई है, उसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम भी शामिल है। सिंधिया घराने के वंशज और वर्तमान में केंद्रीय उड्डयन मंत्री का कार्यभार संभाल रहे ज्योतिरादित्य के लिए यह चुनाव किसी युद्ध से कम नहीं। 2018 में कांग्रेस का झंडा बुलंद करने वाले सिंधिया ने तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ से विवाद और कांग्रेस आलाकमान से नाराजगी के बाद अपने 22 विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हो गये। सिंधिया के बगावत के कारण कांग्रेस की सरकार गिर गई। जिसके बाद शिवराज सिंह चौहान की अगुवाई में भाजपा की सरकार बनवाई। 

2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने उन्हें प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया था। इस चुनाव में कांग्रेस को जितवाने के लिए उन्होंने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी। यह चुनाव पहला ऐसा चुनाव रहा, जहां भाजपा एक समय मजबूत गढ़ माना जाने वाले ग्वालियर-चंबल में जोरदार झटका लगा। सिंधिया की मेहनत का ही कमाल था कि, कांग्रेस ने 34 सीटों में से 27 सीटों पर जीत का परचम लहराई थी। इसी के बदौलत कांग्रेस की सरकार बनी थी। 

हालांकि, इस चुनाव में उनका प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। भाजपा ने सिंधिया को अन्य केंद्रीय मंत्रियों की तरह विधानसभा में उतरने का फैसला लिया था। उनकी बुआ यशोधरा राजे सिंधिया की सीट उन्हें पेश की गई थी। हालांकि, उन्होंने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, सिंधिया ने भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को विश्वास दिलाया की वह बिना चुनाव लड़े ही वह करेंगे जो 2018 में कांग्रेस के लिए ग्वालियर-चंबल में किया था। अगर सिंधिया ने वही कमल दोहरा दिया तो भाजपा में उनका कद कही ऊपर पहुँच जाएगा।