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    -सीमा कुमारी

    हिंदू धर्म में पति और संतान की लंबी आयु, बेहतर स्वास्थ्य, अच्छे भविष्य की कामना के लिए कई व्रत रखे जाते हैं। इन्हीं में से एक है ‘जीवित्पुत्रिका व्रत’ (Jivitputrika Vrat) हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन माताएं जीवित्पुत्रिका व्रत (Jivitputrika Vrat) रखतीं हैं। इस साल ‘जीवित्पुत्रिका व्रत’ आज यानी 18 सितंबर, रविवार को रखा जा रहा है। 

    जीवित्पुत्रिका व्रत में माएं पूरा दिन निर्जल रहकर अपने बच्चों की लंबी उम्र और उनकी खुशहाली के लिए प्रार्थना करती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो माताएं सच्चे मन से इस व्रत को रखकर विधिवत पूजन करती हैं उनकी संतान के जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है और परेशानियों से उनकी रक्षा होती है। ये कठिन निर्जला व्रत मुख्यतौर पर बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में अधिक रखा जाता है। आइए जानें ‘जीवित्पुत्रिका व्रत’ का शुभ मुहूर्त  एवं महत्व के बारे में –

    मुहूर्त

    अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 17 सितंबर 2022 को दोपहर 2.14 मिनट से शुरू होगी। अष्टमी तिथि का समापन 18 सितंबर 2022 को शाम 04.32 मिनट तक रहती है। उदयातिथि के अनुसार जीवित्पुत्रिका व्रत 18 सितंबर 2022 को रखा जाएगा। इस व्रत का पारण 19 सितंबर 2022 को किया जाएगा।

    व्रत पारण समय – सुबह 6.10 के बाद (19 सितंबर 2022)

    पूजा सामग्री

    इस व्रत में भगवान जीमूत वाहन, गाय के गोबर से चील-सियारिन की पूजा का विधान है।  ‘जीवित्पुत्रिका व्रत’ में खड़े अक्षत (चावल), पेड़ा, दूर्वा की माला, पान, लौंग, इलायची, पूजा की सुपारी, श्रृंगार का सामान,  सिंदूर, पुष्प, गांठ का धागा, कुशा से बनी जीमूत वाहन की मूर्ति, धूप, दीप, मिठाई, फल, बांस के पत्ते, सरसों का तेल, खली, गाय का गोबर पूजा में जरूरी  है।

    पूजा-विधि

    ‘जीवित्पुत्रिका’ या ‘जितिया व्रत’ माताओं द्वारा संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए इस दिन निर्जला उपवास रखा जाता है। जितिया व्रत के पहले दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर स्‍नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। फिर पूजा-पाठ करके पूरे दिन में बस एक बार भोजन करें और उसके बाद पूरा दिन निर्जला व्रत रखें।

    वहीं, ‘जीवित्पुत्रिका व्रत’ के दूसरे दिन माताएं सुबह स्‍नान के बाद पूजा-पाठ करती हैं और फिर इसके बाद पूरा दिन एक बूंद भी पानी की ग्रहण नहीं की जाती। इस व्रत के तीसरे दिन जाकर भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही महिलाएं व्रत का पारण करती हैं और अन्‍न ग्रहण कर सकती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत के पारण में यानी तीसरे दिन मुख्‍य रूप से झोर भात, मरुवा (नाचनी/रागी) की रोटी और नोनी का साग खाया जाता है।

    महत्व

    हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार जीवित्पुत्रिका व्रत का संबंध महाभारत काल से है। इस व्रत का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को विधि-विधान रखने व पूजा पाठ करने से हर मनोकामना पूरी होती है।