बाल मजदूरी से मुक्त नहीं हुआ देश, आज भी जारी है शोषण

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    भंडारा. देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के जन्म दिन को भले ही बालक दिवस के रूप में मनाया जाता हो, लेकिन बाल मजदूरी से यह देश अभी तक मुक्त नहीं हो पाया है. 

    शिक्षा से वंचित है गरीब परिवारों के बच्चे

    अगले वर्ष भारत अपनी आजादी के 75 वें वर्ष में प्रवेश कर जाएगा. किसी आजाद देश में अगर 75 वर्ष तक बाल मजदूरी हो रही हो, बाल मजदूरों का शोषण किया जा रहा हो तो देश को सुजलाम्, सुफलाम् कैसे कहा जाए. भंडारा जिला भी बाल मजदूरी के दंश से अछूता नहीं है. गरीबी क्या-क्या नहीं कराती. निरंतर महंगी होती जा रही शिक्षा गरीब परिवारों के बच्चों के लिए दूर की कौड़ी बनती जा रही है. 

    आर्थिक संकट में है कई परिवार

     सरकारी स्कूलों की पढ़ाई का स्तर अच्छा न होने के कारण गरीब भी अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में शिक्षा दिलाना चाहता है, लेकिन वहां की भारी-भरकम फीस वह नहीं भर पाता. सरकारी स्कूलों की शिक्षा का स्तर इतना खराब है कि वहां पढ़े बच्चे आगे चलकर प्रतियोगी परीक्षा में बैठने जितनी योग्यता भी जुटा पाते.

    घर की आर्थिक हालत बेहद खराब होने के कारण किसी दूकान, कंपनी में काम करने वाले बच्चे क्या पढ़ना नहीं चाहते, लेकिन वे परिवार की माली हालत खराब होने की वजह से पढ़ाई छोड़कर किसी मजदूरी का रास्ता अपना लेते हैं. बाल मजदूरों से माह भर काम कराने वाले दुकान या कंपनी के मालिक वेतन के नाम पर बहुत कम पैसे देते हैं. 12 से 14 घंटा काम करने बाद भी इन बाल मजदूरों को पेट भर भोजन भी नसीब नहीं होता. 

    घर की आर्थिक तंगी के कारण तमाम तरह की परेशानी सहन करने वाले इन बाल मजदूरों का शोषण कब रूकेगा, इसके बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता. जिस आयु में अच्छे घरों के बच्चे कीमती वस्तुओं के साथ खेलते दिखायी देते हैं तो इन गरीब बच्चों की आंखों से आंसू झलक पड़ते हैं. घर पर पिता तथा काम की जगह मालिक की डांट ने इन बच्चों के जीवन की तस्वीर ही बदलकर रख दी है.