Fourth class worker denied promotion, related department is deferring

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    गोंदिया.  जिला परिषद चुनाव संपन्न हुए अनेक माह  बीत गई है लेकिन अध्यक्ष  व सभापति पद के चुनाव अब तक नहीं लिए गए. जिससे निर्वाचितों को मानसिक तनाव के साथ ही अपने क्षेत्रों में विकास के कार्यों के न होने से भी भारी नाराजी है.  जिला परिषद व पंचायत समिति के सदस्यों के  अधिकारों का हनन हो रहा है. कमाल तो यह है कि इस गंभीर मुद्दे पर शासन भी न जाने क्यों रहस्यमय चुप्पी साधे बैठा है. इसे लेकर भाजपा के 26 जिप सदस्यों ने नागपुर हायकोर्ट में याचिका दाखिल की है.

    उल्लेखनीय है कि जिप और पंस के चुनाव पहले ही कोरोना के कारण डेढ़ वर्ष आगे बढ़ गए थे. इसके  बाद दिसंबर व जनवरी माह में चुनाव कराए गए. 19 जनवरी को  परिणाम घोषित हुए. नियमानुसार  15 दिन में जिप अध्यक्ष व पसं सभापति पद के चुनाव हो जाने चाहिए थे लेकिन  अब तक भी किसी तरह की कार्रवाई नहीं हुई और अब   जिप के 53 व पंस के 108 सदस्यों की प्रतीक्षा की भी पराकाष्टा हो गई है तथा सभी रोषित हैं. इसी तरह 8 पंस और जिप में पिछले दो वर्ष से प्रशासक राज शुरू है. ग्राम विकास को भी ब्रेक लगा है. इसमें बिना वजह ग्राम विकास विभाग द्वारा चुनाव लटकाकर रखा गया है. अब भाजपा के 26  जिप सदस्य न्यायालयीन लड़ाई में जुट गए हैं. 

    लोकतंत्र की अवमानना

    जिले में निर्वाचित होने वाले जिप और पंस सदस्यों को उनके अधिकार से वंचित रखना याने यह लोकतंत्र की अवमानना है. राज्य सरकार की इस तरह की नीति से लोकतंत्र का ढांचा चरमरा जाएगा. ऐसी प्रतिक्रिया जिप सदस्य संजय टेंभरे, पंकज रहांगडाले, माधुरी रहांगडाले, लायकराम भेंडारकर व डा. लक्ष्मण भगत ने व्यक्त की है.

    याचिका की सुनवाई पर नजरें

    जिप अध्यक्ष और पंस सभापति पद के चुनाव का मामला हल नहीं होने से जिप सदस्यों ने न्यायालय में याचिका दाखिल की है. इस याचिका पर अब अगले सप्ताह सुनवाई शुरू होगी. जिससे उस पर जिलावासियों की नजर लगी है.

    इस तरह फंसा पेंच

    स्थानीय स्वराज्य संस्था में 27 प्रश. ओबीसी आरक्षण सुप्रीम कोर्ट  ने रद्द किया है. जिससे ओबीसी की जगह जनरल कर जिप के चुनाव कराए गए  लेकिन आरक्षण रद्द होने के पूर्व जिप अध्यक्ष और पंस सभापति पद के आरक्षण घोषित हुए थे. जिससे पुराने ही आरक्षण अनुसार चुनाव कराए या नया आरक्षण निकाले ऐसा पेंच जिला चुनाव विभाग के समक्ष निर्माण हो गया है.

    जिससे उसने ग्राम विकास विभाग से इस पर मार्गदर्शन मंगाया है लेकिन ग्राम विकास विभाग ने इस लेकर इतनी लंबी अवधि बीत जाने के बाद भी किसी तरह की सकारात्मक पहल क्यों नहीं की उससे ग्राम विकास विभाग ही नहीं पूरी माविआ सरकार आलोचनाओ का शिकार बन रही है. इसे लेकर जिले के विधायकों का  रवैया भी समझ से बाहर है. वे इस संदर्भ में किसी तरह की सार्थक पहल क्यों नहीं  कर रहे हैं?