Nagpur High Court
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नागपुर. बाबुलखेड़ा स्थित एनआईटी की जमीन पर फर्जीवाड़ा उजागर होने के बाद एनआईटी के विभागीय अधिकारी पंकज पाटिल की शिकायत पर अजनी पुलिस ने एफआईआर दर्ज की. एफआईआर रद्द करने के लिए आरोपित सतीश उके बंधुओं ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की. याचिका पर सुनवाई के दौरान स्वयं की पैरवी कर रहे उके ने कहा कि जिस जमीन को लेकर प्रन्यास ने एफआईआर दर्ज की है, वास्तविक रूप में यह जमीन उनकी नहीं है. राजस्व मंत्री ने भूमि का आवंटन रद्द कर दिया था. सुनवाई के बाद न्यायाधीश विनय जोशी और न्यायाधीश भरत देशपांडे ने अजनी पुलिस और प्रन्यास को नोटिस जारी कर जवाब दायर करने के आदेश दिए. सरकार की ओर से सहायक सरकारी वकील ठाकरे ने पैरवी की.

एक ही मामले के लिए फिर से FIR

सुनवाई के दौरान उके ने कहा कि एफआईआर ही गैरकानूनी है. जिस विवाद को लेकर एफआईआर दर्ज की गई, उसी विवाद के लिए वर्ष 2018 में एक एफआईआर अजनी पुलिस द्वारा पहले ही दर्ज हो चुकी है. पहले की एफआईआर में छानबीन के दौरान पुलिस ने 0.41 हेक्टेयर भूमि पर प्रन्यास के दावे की छानबीन कर ली थी जिससे अब पुन: उसी को लेकर एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती है. सुनवाई के दौरान पहले दर्ज एफआईआर और उस मामले से संबधित चार्जशीट भी अदालत के समक्ष रखी गई. उके ने कहा कि उसने यह जमीन मूल मालिक से खरीदी है. यूएलसी के तहत वापस मिली जमीन है जिसे मूल मालिक को बेचने का अधिकार है.

प्रताड़ित करने दूसरा मामला

– उके ने कहा कि केवल प्रताड़ित करने के लिए उनके खिलाफ एक ही मामले में दूसरी एफआईआर दर्ज किया गया है. सुनवाई के बाद अदालत ने पुलिस को मामले की छानबीन जारी रखने किंतु अदालत की अनुमति के बिना चार्जशीट दायर नहीं करने के आदेश दिए. 

-अभियोजन पक्ष के अनुसार बाबुलखेड़ा स्थित खसरा नंबर 82/2 के उत्तर में स्थित 4,100 वर्गमीटर जमीन कब्जे से संबंधित लोगों की जानकारी पुलिस विभाग ने एनआईटी से मांगी थी. एनआईटी के अधिकारियों ने जमीन से संबंधित पूरा रिकॉर्ड खंगाला. 

-इसमें पता चला कि जमीन पहले यूएलसी में आरक्षित थी किंतु बाद में अतिरिक्त होने के कारण पूरी जमीन एनआईटी के कब्जे में चली गई. जांच के दौरान एनआईटी अधिकारियों ने पाया कि यहां पर 34 प्लॉट पर मकान बन चुके थे. 

-26 प्लॉटधारकों ने नियमितीकरण के लिए आवेदन भी किया था. बचे 12 प्लॉटधारकों को श्रीरंग गृह निर्माण सोसाइटी के अध्यक्ष सुभाष बघेल ने बिक्री पत्र कर बेच दिया था. वहीं चंद्रशेखर मते ने जमीन के मूल मालिक ढवले परिवार से पावर ऑफ अटर्नी लेकर उके बंधुओं को जमीन बेच दी थी.