कैदियों की मजबूरी, बेहद कम मजदूरी

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सुप्रीम कोर्ट के 1998 के ऐतिहासिक फैसले के बावजूद जेल में कैदियों को न्यूनतम से भी कम मजदूरी दी जा रही है।  फैसले में कहा गया था कि किसी भी कैदी को बगैर वेतन के काम पर नहीं रखा जा सकता।  इसके अलावा 2003 का जेल मैनुअल भी स्पष्ट शब्दों में कहता है कि कैदियों को दिया जानेवाला वेतन न्यूनतम या मामूली नहीं होना चाहिए, बल्कि उचित और न्यायसंगत रहना चाहिए।  

कैदियों को भुगतान की जानेवाली मजदूरी की दरों का मानकीकरण किया जाना चाहिए और सरकारी निर्देश के मुताबिक समय-समय पर संशोधित किया जाना चाहिए।  देश के कारागृहों में 5। 73 लाख कैदी हैं जिनमें से 75 फीसदी से अधिक विचाराधीन कैदी हैं।  इन सभी से काम लिया जाता है।  

कैदियों का वर्गीकरण कुशल, अर्धकुशल व अकुशल के रूप में होता है।  राज्य सरकार इनका वेतन तय करती है।  विभिन्न राज्यों में कैदियों को मजदूरी के भुगतान की अलग-अलग दर है।  सर्वे में पता चला कि न्यूनतम जेल वेतन 100 रुपए रोज निर्धारित होने पर भी महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ व असम में कुशल कार्य के बावजूद कैदी को 70 रुपए रोज दिए जाते हैं।  

इसके विपरीत दिल्ली की तिहाड़ जेल में अकुशल कैदी 194 रुपए और कुशल कैदी 308 रुपए प्रतिदिन कमाता है।  गोवा में यह मजदूरी 307 और 417 रुपए तो हरियाणा में 292 और 338 रुपए है।