देश में 4 जोन बनाकर सुप्रीम कोर्ट की बेंच खोली जाए

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    न्याय प्रणाली को सुगम बनाने के लिए एक व्यावहारिक कदम यह हो सकता है कि भारत जैसे बड़े देश में उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम में 4 जोन बनाकर वहां सुप्रीम कोर्ट की बेंच खोली जाएं. दिल्ली के अलावा मुंबई, चेन्नई और कोलकाता में देश की सबसे बड़ी अदालत की खंडपीठ बनाई जा सकती है. इससे लाभ यह होगा कि दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट पर मामलों का बोझ कम हो जाएगा. दक्षिण भारत के 5 राज्यों के केस चेन्नई की बेंच में निपटाए जा सकेंगे.

    मुंबई की पीठ में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात व छत्तीसगढ़ के मामले निपट सकते हैं. कोलकाता की पीठ में बिहार, ओडिशा व पूर्वोत्तर राज्यों के केस लिए जा सकते हैं. यूपी, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, उत्तराखंड के मामलों का निपटारा दिल्ली के सर्वोच्च न्यायालय में हो सकता है. यह विचार पहले भी रखा जा चुका है. इस बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने यह मांग उठाई है. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना को पत्र लिखकर चेन्नई, कोलकाता और मुंबई में सुप्रीम कोर्ट की स्थायी शाखा या बेंच बनाने की मांग की है.

    उनकी दलील है कि इस देश के विविधतावादी और बहुलतावादी समाज का समान प्रतिनिधित्व सुप्रीम कोर्ट में दिखना चाहिए. इसलिए जब सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति की जाए तो सभी क्षेत्रों की समान भागीदारी सुनिश्चित की जाए. स्टालिन ने एक महत्वपूर्ण तथ्य की ओर इंगित करते हुए कहा कि न्याय तक सबकी पहुंच हो, इसके लिए संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद-32 का प्रावधान किया है लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में इस अनुच्छेद के तहत अपने मामले को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने की सुविधा देश के सभी कोने के नागरिकों को नहीं है.

    इसकी सबसे बड़ी वजह लोगों की आर्थिक स्थिति है. देश के दूरदराज के इलाकों के लोग अपने मामले की सुप्रीम कोर्ट में अपील नहीं कर पाते क्योंकि वहां हर पेशी के लिए दिल्ली जाने में समय और धन दोनों की जरूरत है. इसके अलावा दिल्ली के सुप्रीम कोर्ट में मुकदमों का अंबार लगा है. बीच-बीच में जनहित याचिकाएं भी लगा दी जाती हैं. ऐसी स्थिति में 4 जोन में सुप्रीम कोर्ट का विकेंद्रीकरण कर वहां अलग-अलग पीठ स्थापित की जा सकती है.