By नवभारत | Updated Date: Nov 18 2018 11:33PM |
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नागपुर. पुलिस विभाग में इन दिनों बड़ा ही अजीबोगरीब कामकाज चल रहा है. कहने को तो सहायक उपनिरीक्षकों और हवलदारों को कर्मचारियों का दर्जा दिया जाता है, लेकिन काम उनसे अधिकारियों का लिया जा रहा है. शहर के अधिकांश थानों में ड्यूटी अफसर की नौकरी हेडकांस्टेबल और एएसआई कर रहे हैं. पगार तो उन्हें कर्मचारियों की मिल रही है, लेकिन काम अधिकारियों का लिया जा रहा है. कर्मचारियों से ड्यूटी आफिसर की नौकरी करवाने से लोग बेहद परेशान हैं. पूर्व पुलिस कमिश्नर के. वेंकटेशम ने शहर में पुलिस का नेटवर्क बढ़ाने और थाना क्षेत्रों में नागरिकों के साथ समन्वय बढ़ाने के इरादे से अधिकारियों को बीट के हिसाब से ड्यूटी लागू करने की योजना शुरू की थी. इस योजना के तहत सब- इंस्पेक्टरों को अलग-अलग एरिया में बीट अधिकारी बनाया गया था. उस बीट में होने वाले अपराध का जिम्मा भी अधिकारियों को सौंपा गया था. दिन में थानों में ड्यूटी अफसर की नौकरी एएसआई और हवलदारों से लेने को कहा गया था.
बीट में काम करने का बहाना
यह फरमान जारी क्या हुआ, शहर के हर थाने में ड्यूटी अफसर की नौकरी कर्मचारियों से करवाई जाने लगी. बीट में काम करने के नाम पर अधिकारियों की मौज हो गई. अधिकारी दैनिक कार्यों से बचने लगे. हवलदार काम कर रहे हैं और अधिकारी आराम कर रहे हैं. जांच और अन्य बहाने कर अधिकारी थाने में सूरत तक नहीं दिखाते. यदि सही में अधिकारी बीट में काम कर रहे हैं तो अपराध रोकने में मदद क्यों नहीं मिल रही है. इस वजह से कर्मचारी वर्ग काफी परेशान है. ऐसा नहीं है कि सारे अधिकारी कामचोरी कर रहे हैं. कई ऐसे भी अधिकारी हैं जो अपना कर्तव्य बखूबी निभा रहे हैं, लेकिन कामचोरों की मौज हो गई. थाने के अधिकारी भी काम केवल उन्हें देते हैं जो अच्छा काम करते हैं. जाहिर-सी बात है कि जो काम करना ही नहीं चाहता उससे काम कैसे लें.
8वीं पास पर जिम्मेदारी
कुछ कर्मचारियों ने बताया कि जब वे पुलिस विभाग में सिपाही भर्ती हुए थे, तब केवल 8वीं तक शैक्षणिक पात्रता हुआ करती थी. मजबूत कद-काठी और फूर्ती से ही उन्हें विभाग में नौकरी मिल गई. समय के हिसाब से कई लोगों ने पढ़ाई कर अपना स्तर बढ़ाया और कम्प्यूटर का कामकाज सीख लिया, लेकिन आज भी अनेक कर्मचारी ऐसे हैं जिन्हें कम्प्यूटर नहीं आता. आज पुलिस में भर्ती होने वाले अधिकारी पोस्ट ग्रैजुएट हैं. कम से कम ग्रैजुएट तो हैं ही. उनकी ट्रेनिंग अच्छी हुई है और कानूनी किताबों का अच्छा ज्ञान है. उनकी भर्ती भी बतौर फौजदार हुई है. तो अधिकारियों के काम भी उन्हीं से करवाए जाने चाहिए. उनकी तनख्वाह और कर्मचारियों की तनख्वाह में फर्क है. कोई संवेदनशील मामला आ जाए तो आज भी पुराने कर्मचारियों को समझ नहीं आता क्या करें. कौनसी कानूनी धाराएं लगाई जाएं, इसीलिए अधिकारियों का काम अधिकारियों से करवाना चाहिए. ज्यादा पगार लेकर भी अधिकारी आराम कर रहे हैं और हमसे थाने का सारा काम करवाया जा रहा है. यदि नए अधिकारियों को थाने का काम सीखने का अवसर नहीं मिलेगा, तो भविष्य की जिम्मेदारी कैसे संभालेंगे. कई अधिकारी ऐसे हैं जो सिर्फ कॉपी-पेस्ट के भरोसे चल रहे हैं.
डेढ़ सौ से ज्यादा सब-इंस्पेक्टरों की कमी
इस संबंध कुछ थानेदारों ने चर्चा करने पर बताया कि शहर में सब-इंस्पेक्टर स्तर के अधिकारियों की काफी कमी है. डेढ़ सौ से ज्यादा सब-इंस्पेक्टर शहर में कम हैं. ऐसे में स्वाभाविक है उपलब्ध स्टाफ में ही काम निकालना पड़ेगा. कई बार अधिकारियों को जांच के लिए शहर और राज्य से बाहर जाना पड़ता है. कई दिन लग जाते हैं. ऐसे में यदि ड्यूटी अफसर का काम हवलदार और एएसआई से लिया जा रहा है तो गलत क्या है. जो लोग इस काबिल हैं उन्हें ही काम दिया जाता है. पहले एएसआई को विभाग द्वारा वन स्टेप प्रमोशन देकर पीएसआई बनाया गया था. तब भी वो बतौर अधिकारी का ही काम करते थे. अब शासन ने उनके प्रमोशन पर रोक लगा दी है. जब तक अधिकारियों की संख्या पर्याप्त नहीं होगी, इस तरह ही काम संभालना पड़ेगा.